स्वामी प्रसाद मौर्य की नाराजगी के बाद समाजवादी पार्टी से Saleem Sherwani ने दिया इस्तीफा

Last updated on February 21st, 2024 at 05:13 pm

समाजवादी पार्टी में आंदोलन और विवाद ने एक बार फिर से गहराई को छू लिया है, जब उनके प्रमुख नेता और बड़े चेहरे समाजवादी पार्टी को छोड़कर इस्तीफा दे रहे हैं। इस बार, बदायूं लोकसभा सीट से पांच बार के सांसद रहे Saleem Sherwani ने भी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। जिसमें सपा के अखिलेश यादव के नेतृत्व में पार्टी की नीतियों के खिलाफ उनकी असंतुष्टि भी शामिल है।

Saleem Sherwani ने दिया इस्तीफा

Saleem Sherwani अपने इस्तीफे के पत्र में यह दावा किया कि समाजवादी पार्टी में मुसलमानों के समर्थन और मूल्यों की उपेक्षा हो रही है। उन्होंने राज्यसभा के चुनाव में भी किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया जाने के खिलाफ आपत्ति जताई। इसके अलावा, उन्होंने इंडिया गठबंधन की भी आलोचना की और कहा कि विपक्षी गठबंधन की कोशिश बेमानी लगती है।

सलीम शेरवानी के इस्तीफे के बाद समाजवादी पार्टी की स्थिति में और भी अशांति उत्पन्न हो गई है। उन्हें नहीं लगता कि उनकी पार्टी सरकार की नीतियों से ज्यादा एक दूसरे से लड़ने में ज्यादा दिलचस्पी रखती है। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की भी आलोचना की और कहा कि इसमें दिखावटी बन गई है।

सलीम शेरवानी के इस्तीफे के साथ ही उनकी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी रिश्तों का भी ख्याल रखा जा रहा है। उन्होंने पूर्व में समाजवादी पार्टी के टिकट पर कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव भी लड़े थे, लेकिन इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वे फिर से समाजवादी पार्टी में वापस आ गए थे।

सलीम शेरवानी के इस्तीफे के परिणामस्वरूप समाजवादी पार्टी की स्थिति में और भी परेशानी बढ़ गई है। उनके इस्तीफे के बाद पार्टी की संरचना में और भी उथल-पुथल हो सकती है। इससे पार्टी के नेतृत्व पर भी दबाव बढ़ सकता है।

इस बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि समाजवादी पार्टी के इस्तीफे के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश की राजनीतिक मानसिकता में भी बदलाव आ सकता है। इससे लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी की प्रदर्शनी में भी असर पड़ सकता है।

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को इन आंदोलनों और इस्तीफों को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्हें अपने नेतृत्व की मान्यता को बनाए रखने के लिए पार्टी के विभाजन को रोकने के लिए कठिन परिश्रम करना होगा। इसके बिना, पार्टी को बड़ी मुश्किल हो सकती है और यह उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा की ओर ले जा सकता है।

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