आरक्षण पर नेहरू और अंबेडकर के विचार: पीएम मोदी के दावे और ऐतिहासिक दृष्टिकोण

पीएम मोदी का बयान

हाल ही में बिहार के पूर्वी चंपारण में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरक्षण को लेकर विपक्ष पर निशाना साधा। पीएम मोदी ने कहा कि अगर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर नहीं होते, तो नेहरू ने एससी-एसटी के लिए आरक्षण की अनुमति नहीं दी होती। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्षी गुट संविधान बदलना चाहता था और धार्मिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण देना चाहता था।

नेहरू का आधिकारिक पत्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवाहरलाल नेहरू के एक आधिकारिक पत्र का हवाला दिया, जिसमें नेहरू ने देशभर के मुख्यमंत्रियों को जाति और पंथ के आधार पर नौकरियों में आरक्षण के बजाय पिछड़े समूहों को अच्छी शिक्षा देने पर जोर दिया था। नेहरू ने जून 1961 में लिखा था, “हम एससी और एसटी की मदद करने के बारे में कुछ नियमों और परंपराओं से बंधे हुए हैं, वे मदद के हकदार हैं। लेकिन, मैं किसी भी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूं, खासकर नौकरी में। पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र विकल्प अच्छी शिक्षा के अवसर देना है, जिसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है।”

नेहरू का आरक्षण पर दृष्टिकोण

नेहरू ने अपने पत्र में कहा था, “सांप्रदायिक और जातिगत आधार पर आरक्षण प्रतिभाशाली और सक्षम लोगों को बर्बाद कर देता है, जबकि समाज दोयम दर्जे या तीसरे दर्जे का बना रहता है। मुझे यह जानकर दुख हुआ कि सांप्रदायिक विचार के आधार पर आरक्षण का यह मामला कितना आगे बढ़ गया है।”

बीआर अंबेडकर की राय

संविधान सभा में बीआर अंबेडकर ने आरक्षण को एक “सामान्य सिद्धांत” के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने तर्क दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि रोजगार के मामले में सभी नागरिकों को अवसर की समानता दी जाए, “पिछड़ा” शब्द एक आवश्यक योग्यता है। इसका उद्देश्य था कि उत्पीड़ित समुदायों को दिए गए आरक्षण के अवसर की समानता के अधिकार को पूरी तरह से “खत्म” न कर दे।

अंबेडकर ने कहा कि पिछड़ा समुदाय को लेकर सवाल प्रत्येक स्थानीय या राज्य सरकार की ओर से तय किया जाएगा। यह दृष्टिकोण इस बात को सुनिश्चित करता है कि आरक्षण का लाभ वास्तव में उन समुदायों तक पहुंचे, जिनके लिए यह आरक्षण किया गया है।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान ने वर्तमान राजनीतिक माहौल में एक नई बहस को जन्म दिया है। उनके दावों से यह स्पष्ट होता है कि आरक्षण पर अलग-अलग समय में नेताओं के विचार भिन्न रहे हैं। नेहरू के आरक्षण विरोधी विचार और अंबेडकर के आरक्षण समर्थक दृष्टिकोण के बीच एक ऐतिहासिक द्वंद्व रहा है।

निष्कर्ष

आरक्षण पर नेहरू और अंबेडकर के विचारों का विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि दोनों के दृष्टिकोण में मूल अंतर था। जहां नेहरू आरक्षण के बजाय शिक्षा पर जोर देते थे, वहीं अंबेडकर ने आरक्षण को समाज में समानता लाने का एक महत्वपूर्ण साधन माना। पीएम मोदी के ताजा बयानों ने इस ऐतिहासिक विवाद को फिर से सुर्खियों में ला दिया है, जिससे यह सवाल उठता है कि वर्तमान समय में आरक्षण की आवश्यकता और उसकी दिशा क्या होनी चाहिए।

यह बहस न केवल राजनीतिक मंच पर बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में भी चर्चा का विषय बन गई है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस बहस को संवेदनशीलता और समझदारी से समझें और इसके समाधान के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाएं।

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